Monday, July 13, 2020

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पर्यावरण

हम सब पर्यावरण के विषय में जानते हैं कि जो भी प्राकृतिक संसाधन इस धरती पर उपलब्ध हैं वे पर्यावरण का ही हिस्सा हैं और सब मिलकर पृथ्वी पर पर्यावरण का निर्माण करते हैं। इन प्राकृतिक संसाधनों में धरती, वायु, जल, सूर्य का प्रकाश, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी आते हैं। इन प्राकृतिक संसाधनों की उपस्थिति से ही धरती पर जीवन संभव है। प्रकृति ने हमें यह पर्यावरण रूपी अमूल्य भेंट प्रदान की है। इस पर्यावरण से ही हमारी जरूरत का सारा सामान उपलब्ध भी होता है। हमें जीवन जीने के लिए जो भी आवश्यक वस्तु चाहिये वह इस पर्यावरण से हमें उपलब्ध होती है। जैसे सांस लेने के लिए हवा (ऑक्सीजन), खाने के लिए अनाज, फल-फूल, सब्जी एवं पीने के लिए पानी। इनमें से किसी एक भी तत्व के बिना मनुष्य एवं जानवरों का जीवित रहना असंभव है। पूरी सृष्टि में मात्र पृथ्वी ही ऐसा ग्रह है जहां पर संतुलित पर्यावरण उपलब्ध है जिसके कारण इस ग्रह पर ही जीवन संभव है।


प्रकृति द्वारा प्रदान की गई इस अमूल्य सौगात को मनुष्य संभाल नहीं पा रहा है। वह अपने स्वार्थ के लिए इसका अंधाधुंध दोहन कर रहा है और साथ ही इसे दूषित भी कर रहा है। इन सबके कारण धीरे-धीरे धरती पर पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है और धरती पर कई नई बीमारियों एवं आपदाओं का जन्म हो रहा है। मनुष्य की लापरवाही आगे आने वाली पीढ़ी के लिए धरती को रहने लायक ग्रह न बनाने पर मजबूर कर रही है। पर्यावरण के संतुलन में गड़बड़ी के कारण ही अस्वाभाविक मौसम परिवर्तन जैसे किसी वर्ष बहुत अधिक वर्षा तो किसी वर्ष बिलकुल सूखे की स्थिति, बहुत अधिक ठंड तो कभी बहुत अधिक गर्मी, भूकम्प जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस मौसम परिवर्तन का पूरे पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है जैसे कभी तो फसल ठीक हो जाती है पर कभी सारी बर्बाद, हर मौसम में नई-नई बीमारियाँ जन्म लेती हैं। खेती में रसायनों के अत्यधिक उपयोग के कारण मिट्टी के पोषक तत्व तो समाप्त हो ही रहे हैं, साथ ही साथ इनसे उगने वाली फसलों का खाकर इंसान बीमारियों का पुतला बनता जा रहा है। इससे पहले कि विज्ञान नई बीमारी का समाधान निकाले कोई दूसरी बीमारी ही जन्म ले लेती है। मनुष्य के स्वार्थ के चलते वायु, भूमि, जल सभी प्रदूषित होते जा रहे हैं और ऐसे पर्यावरण में स्वस्थ रहना तो मुश्किल बल्कि साँस लेना भी मुश्किल होता जा रहा है।

अब समय आ गया है कि मनुष्य अपने स्वार्थ के कारण प्रकृति की अमूल्य सौगात को नुकसान पहुँचाना बंद कर दे। अनियंत्रित दोहन कर इसे दूषित न करे और प्राकृतिक उपाय अपनाये। यदि मनुष्य ठान ले तो वह कई छोटे-छोटे उपाय अपना कर इस पर्यावरण को बचा सकता है। प्रत्येक शुभ अवसर पर पेड़ लगा कर, पूजा के नाम पर नदियों को दूषित न करके, लकड़ी हेतु वनों की सीमित कटाई करके, खेती में रसायनों का उपयोग न करके आदि। विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विकास धरती एवं इसमें रहने वाले जीव-जन्तुओं के विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक है पर पर्यावरण की कीमत पर नहीं। हम इन तकनीकों का उपयोग अवश्य करें लेकिन यह भी सुनिश्चित कर लें कि इससे हमारे पर्यावरण को किसी भी प्रकार का ऐसा नुकसान न पहुँचे जिसे सुधारना मुश्किल ही नहीं बल्कि असम्भव हो।

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